राजमहल होटल शहर का सबसे बड़ा और आलीशान होटल था। उसके हर फ़र्श पर बड़े क़ीमती क़ालीन बिछे थे और छतों में ख़ुशनुमा फ़ानूस लटके हुए थे। मेज़ कुर्सियाँ और खाने पीने के बर्तन भी बड़े साफ़ सुथरे और आला दर्जे के थे। हर-रोज़ चार से पाँच बजे के दरमियान वहाँ शहर के बड़े अमीर लोग चाय पीने आते थे। क्योंकि ग़रीब लोग तो इस होटल में जा ही नहीं सकते थे। इस होटल के बड़े हाल में जहाँ बड़े लोग बैठ कर चाय पीते थे। ग़ुल मचाना मना था, और ना बदतमीज़ी की कोई बात करने की इजाज़त थी। क्योंकि बड़े लोग ना तो ग़ुल मचाने को अच्छा समझते थे और ना किसी क़िस्म की बदतमीज़ी को।
इस होटल में बहुत से बैरे मुलाज़िम थे जो अलग़ू के नीचे काम करते थे क्योंकि वो इन सबसे बड़ा बैरा था।
एक दिन जबकि होटल के बड़े हाल में बड़े लोग चाय पीने के लिए जमा थे। बैरे बड़ी जल्दी में इधर उधर आ जा रहे थे। मेहमानों से आर्डर ले रहे थे। चाय और उस के साथ खाने पीने की चीज़ें मेज़ों पर लगा रहे थे और अलग़ू एक तरफ़ देख रहा था कि कोई बैरा अपना काम सुस्ती से तो नहीं कर रहा। मगर वो सब अपना अपना काम ठीक ठीक कर रहे थे। अचानक एक तरफ़ से शोर सुनाई दिया और एक बुड़ी ही भोंडी आवाज़ आई।
’’ए बैरा क्या मेरे लिए चाय नहीं लाओगे?''
सब हैरान हो कर इधर देखने लगे कि ये कौन है जो महफ़िल के आदाब से भी वाक़िफ़ नहीं। जो ये भी नहीं जानता, कि तहज़ीब वाले लोगों में बैठ कर ऐसे नहीं किसी को बुलाया करते। और फिर ये देखकर कि वो कौन है, सब के पांव में डर से जूते ढीले पड़ गए। काँपते हुए हर कोई अपनी अपनी कुर्सी में दुबक गया। मर्द भी और औरतें भी। अलग़ू आँखें झपकते हुए बड़े ग़ौर से उधर देख रहा था। कि ख़ुदा की ज़मीन पर ये क्या है, ये कौन है? खिड़की के क़रीब मेज़ पर एक ख़ौफ़नाक कुत्ता बैठा था और सफ़ेद रूमाल उसकी गर्दन से बंधा था जो कोई चीज़ खाते वक़्त इस्तिमाल करते हैं। अलग़ू ग़ुस्से में खिड़की की तरफ़ बढ़ा और पूछाः
’’तुम कौन हो?''
’’ओह, आदाब अर्ज़। मुझे ख़ुशी है कि तुमको मेरा भी कुछ ख़्याल आया। अब मैं चाय का आर्डर दे सकूँगा कुत्ते ने कहा।
’’मैं पूछता हूँ तुम कौन हो?' अलग़ू ने फिर वही सवाल किया।
’’ओह भई अजीब सवाल है। क्या तुम नहीं जानते, मैं टिंकू हूँ। कुत्तों की नुमाइश में दोबार ख़ूबसूरती का इनाम ले चुका हूँ। इस शहर का हर शख़्स मुझको जानता है। तुम नहीं जानते तो तुम्हें ख़ुदा समझे।''
’’समझ गया।'' अलग़ू ने मुस्कुरा कर कहा। ''मैं ये मालूम करना चाहता हूँ टिंकू साहब यहाँ क्यों तशरीफ़ लाए हैं? ''
’’दोपहर की चाय में हमेशा किसी अच्छी जगह पीना पसंद करता हूँ। आज इतवार है, मैंने सोचा चलो आज इस शहर के सबसे बड़े होटल राजमहल में चल कर चाय पीते हैं। यहां चला आया। अब तुम जल्दी से चाय लाओ। हाँ, बड़ी तेज़ सी और गर्मगर्म टिंकू ने कहाः
अलग़ू उसकी बातें सुनकर फिर मुस्कुराया कहने लगा। ''टिंकू साहब, आप यहाँ से तशरीफ़ ले जाएं।''
’’क्या मतलब? '' टिंकू ने बड़े ग़ौर से अलग़ू को देखते हुए कहा।
’’मतलब ये है कि यहाँ बड़े लोग चाय पीने आते हैं। एक दम बड़े लोग। जरनैल, करनैल, लाखों पति, करोड़ पति, नवाब, राजे, महाराजे। तुम ऐसे चपड़क़नाती को तो इस होटल में घुसने की इजाज़त नहीं है। तुम यहाँ चाय पीना चाहते हो। अक़्ल का ईलाज करवाओ''
’’देखो जी ज़बान सँभाल कर बात करो।''
टिंकू ने गरज कर कहाः
’’आज तक कभी किसी ने मेरी इस तरह हतक नहीं की। तुमने मुझे ऐरा ग़ैरा नत्थू खेरा समझा है। जबकि सब लोग मुझे बड़ा मुअज़्ज़ज़ समझते हैं। जहाँ तक हूँ लोग मेरे साथ इज़्ज़त से पेश आते हैं। मैं तुमको बताए देता हूँ, अगर तुम मेरे लिए चाय ना लाए तो अच्छा ना होगा।''
’’क्या अच्छा ना होगा।'' अलग़ू ने ज़रा तुंद लहजा में कहा।
’’क्या करोगे तुम? ''
’’मैं इस क़दर ज़ोर से भोंकना शुरू कर दूंगा कि तुम देखोगे फिर क्या होगा।'' टिंकू ने कहा
अलग़ू हैरान और परेशान था कि वो ऐसे मेहमान का क्या करे। अजीब मेहमान था। इस से पहले तो ऐसा कोई मेहमान इस होटल में ना आया था।
अलग़ू मुंह में बड़बड़ाता हुआ एक तरफ़ निकल गया। वो अब टिंकू से कोई बात ना करना चाहता था।
ये कैसे हो सकता था कि वो एक कुत्ते के आर्डर देने पर इस को चाय पेश करे।
टिंकू ने जब देखा कि इस का मज़ाक़ उड़ाया गया है और इस के आर्डर देने पर भी इस को चाय पेश नहीं की गई तो वो मेज़ पर अगली पिछली टांगें जोड़ कर लाऊड स्पीकर की तरह बैठ गया। और अपना पूरा मुँह खोल दिया
’’बू--- वो--- वुफ़---!
अचानक हॉल मैं कानों का बहरा कर देने वाली आवाज़ गूँजी। जैसे दिल गरजता है।
हॉल की दीवारें काँप गईं। छत से लटकता फ़ानूस झूलने लगा। जैसे भूंचाल आगया हो।
चाय पीते बड़े लोग परेशान हो गए। ये क्या बदतमीज़ी है। ऐसी गड़बड़ इस से पहले कभी इस होटल में ना हुई थी।
एक मेम साहब अपना एक शीशे वाला चशमा आँख पर से उतारते हुए दरवाज़े की तरफ़ भागीं
एक बहुत मोटे साहब ने दोनों हाथ अपने कानों पर रख लिए कि गरज से उस के कान के पर्दे ना फट जाएं
’’बू--- वो--- वुफ़---!
टिंकू फिर गरजा
’’मेरे लिए मक्खन वाले तोस लाओ---उफ़---उफ़---केक पीस भी लाओ---भौं-भौं---उफ़--- अफ़--- चॉकलेट बिस्कुट भी ---उफ़---उफ़---फ़ुल सीट चाय--- चार उबले हुए अंडे---उफ़---बू---वो---उफ़---समोसे अगर हूँ तो वो भी ले आओ---उफ़---उफ़---अंगूर भी लाओ भौं-भौं---सैफ भी, मगर खट्टे ना हूँ। अगर मेरे दाँत खट्टे हुए, तो मैं काटना शुरू करदूंगा। फिर ना कहना मैंने काट खाया। भौं-भौं।। अफ़---उफ़---बू---वो---उफ़---उफ़---!!''
ख़ुदा की पनाह। टिंकू बुरी तरह भौंके जा रहा था। जैसे बादल गरज रहा हो
हॉल में भगदर् मच गई। बड़े लोग परेशान हो गए। अगर इतने में अलग़ू और दूसरे बैरे ना आजाते, तो हाल में क़ियामत आजाती। उन्होंने तश्तरियों में वो सारी चीज़ें उठाई हुई थीं, जिनका टिंकू ने आर्डर दिया था।
’’भई टिंकू साहब, ख़ुदा के लिए अब चुप हो जाओ ये लाऊड स्पीकर बंद करो। ये देखो तुम्हारी पसंद की सब चीज़ें हाज़िर हैं।''
’’हो---हो---उफ़---उफ़---उफ़---!' टिंकू को हंसी आगई
सब चीज़ें उस के सामने मेज़ पर लगा दी गईं
और फिर टिंकू मज़े मज़े से खाने लगा
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