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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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याक़ूब यावर

1952 | बनारस, भारत

याक़ूब यावर

अशआर 6

अगर वो आज रात हद्द-ए-इल्तिफ़ात तोड़ दे

कभी फिर उस से प्यार का ख़याल भी आएगा

आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं सर-ए-शाख़-ए-निहाल

नख़्ल-ए-ख़्वाहिश पे वही बे-समरी रहना थी

तू ला-मकाँ में रहे और मैं मकाँ में असीर

ये क्या कि मुझ पे इताअत तिरी हराम हुई

लहू महका तो सारा शहर पागल हो गया है

मैं किस सफ़ से उठूँ किस के लिए ख़ंजर निकालूँ

शहर-ए-सुख़न अजीब हो गया है

नाक़िद यहाँ अदीब हो गया है

ग़ज़ल 9

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