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सलीम सिद्दीक़ी

1962 | दिल्ली, भारत

सलीम सिद्दीक़ी

अशआर 5

दुश्मन से ऐसे कौन भला जीत पाएगा

जो दोस्ती के भेस में छुप कर दग़ा करे

एक दिन तो दिल को भी तरजीह दे कर देख लूँ

अक़्ल से कह दो कि मुझ को आज तन्हा छोड़ दे

तो रंज-ओ-ग़म से ही रब्त है ही आश्ना-ए-ख़ुशी हूँ मैं

मिरी ज़िंदगी भी अजीब है इसे मंज़िलों का पता नहीं

गलियों गलियों शहरों शहरों किस ने आग लगाई है

बुग़्ज़-ओ-नफ़रत का दुनिया को किस ने ये माहौल दिया

मुल्क की गलियाँ लहू पीने की आदी हो जाएँ

ये तअ'स्सुब ज़ह्र का ज़ेहनों में भरना छोड़ दे

ग़ज़ल 9

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