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राजिंदर सिंह बेदी

1915 - 1984 | मुंबई, भारत

उर्दू के महत्वपूर्ण अफ़साना निगारों में शामिल, मंटो के समकालीन, भारतीय समाज और लोक कथाओं से सम्बंधित कहानियां बुनने के लिए मशहूर. नॉवेल, ड्रामेऔर फिल्मों के लिए संवाद व स्क्रिप्ट लिखे.

उर्दू के महत्वपूर्ण अफ़साना निगारों में शामिल, मंटो के समकालीन, भारतीय समाज और लोक कथाओं से सम्बंधित कहानियां बुनने के लिए मशहूर. नॉवेल, ड्रामेऔर फिल्मों के लिए संवाद व स्क्रिप्ट लिखे.

राजिंदर सिंह बेदी की कहानियाँ

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क्वारंटीन

कहानी में एक ऐसी वबा के बारे में बताया गया है जिसकी चपेट में पूरा इलाक़ा है और लोगों की मौत निरंतर हो रही है। ऐसे में इलाके़ के डॉक्टर और उनके सहयोगी की सेवाएं प्रशंसनीय हैं। बीमारों का इलाज करते हुए उन्हें एहसास होता है कि लोग बीमारी से कम और क्वारंटीन से ज़्यादा मर रहे हैं। बीमारी से बचने के लिए डॉक्टर खु़द को मरीज़ों से अलग कर रहे हैं जबकि उनका सहयोगी भागू भंगी बिना किसी डर और ख़ौफ़ के दिन-रात बीमारों की सेवा में लगा हुआ है। इलाक़े से जब महामारी ख़त्म हो जाती है तो इलाक़े के गणमान्य की तरफ़ से डॉक्टर के सम्मान में जलसे का आयोजन किया जाता है और डॉक्टर के काम की तारीफ़ की जाती है लेकिन भागू भंगी का ज़िक्र तक नहीं होता।

आलू

पेट की आग किस तरह इंसान को अपना दृष्टिकोण बदलने पर मजबूर करती है और भले-बुरे में तमीज़ करने में असमर्थ हो जाता है, इस कहानी का मुख्य बिंदु है। लखी सिंह एक बहुत ही ग़रीब कामरेड था जो बैलगाड़ियों और छकड़ों में अटके रह गए आलू जमा करके घर ले जाता था। एक दिन कमेटी की तरफ़ से बैलगाड़ियों के लिए न्यू मेटक टायरों का बिल पास हो गया, जिसके विरोध में गाड़ी बानों ने हड़ताल की और हड़ताल के नतीजे में लखी सिंह उस दिन बिना आलूओं के घर पहुँचा। उसकी पत्नी बसंतो ने हर मौक़े पर एक कामरेड की तरह लखी सिंह का साथ दिया था, आज बिफर गई, और उसने लखी सिंह से पूछा कि उसने हड़ताल का विरोध क्यों न किया? लखी सिंह सोचने लगा क्या बसंतो भी प्रतिक्रियावादी हो गई है?

जब मैं छोटा था

बच्चों की नफ़्सियात पर मब्नी कहानी है। बच्चों के सामने बड़े जब अख़लाक़-ओ-आदत संवारने के लिए अपने बचपन की वाक़िआत को सुनाते हैं तो उन वाक़िआत में उनकी छवि एक नेक और शरीफ़ बच्चे की होती है। असल में ऐसा होता नहीं है, लेकिन जान बूझ कर ये झूठ बच्चों की नफ़्सियात पर बुरा असर डालती है। इस कहानी में एक बाप अपने बेटे को बचपन में की गई चोरी की वाक़िआ सुनाता है और बताता है कि उसने दादी के सामने क़बूल कर लिया था और दादी ने माफ़ कर दिया था। लेकिन बच्चा एक दिन जब पैसे उठा कर कुछ सामान ख़रीद लेता है और अपनी माँ के सामने चोरी को क़बूल नहीं करता तो माँ इतनी पिटाई करती है कि बच्चा बीमार पड़ जाता है। बच्चा अपने बाप से चोरी के वाक़िआ को सुनाने की फ़र्माइश करता है। बाप उसकी नफ़्सियात समझ लेता है और कहता है बेटा उठो और खेलो, मैंने जो चोरी की थी उसे आज तक तुम्हारी दादी के सामने क़बूल नहीं किया।

बब्बल

काम इच्छा में तड़पते हुए मर्द की कहानी है। दरबारी लाल सीता से मुहब्बत करता है लेकिन उससे शादी नहीं करना चाहता। दरबारी लाल आर्थिक रूप से सुदृढ़ है जबकि सीता एक ग़रीब विधवा की इकलौती बेटी है। सीता चाहती है कि दरबारी उससे शादी करने के बाद ही उससे यौन सम्बंध बनाये लेकिन दरबारी केवल अपनी हवस पूरी करना चाहता है। वह एक होटल में सीता के साथ जाता है जहाँ उन्हें संदेहास्पद समझ कर कमरा नहीं दिया जाता है। दूसरी बार वह एक भिखारन की सुंदर लड़के को साथ लेकर जाता है तो उसे कमरा मिल जाता है। दरबारी कामेच्छा में जल रहा है लेकिन बबल अपनी मासूमाना अदाओं से उसके इरादों में बाधित होता है। झुँझला कर वो बबल को थप्पड़ मार देता है। सीता की मामता जाग जाती है और वो बबल को अपनी आग़ोश में छुपा लेती है और दरबारी को शर्म दिलाती है। दरबारी लज्जित होता है और फिर सीता से शादी करने का वादा करता है।

हड्डियाँ और फूल

"हासिल की उपेक्षा और ला-हासिल के लिए गिले-शिकवे की इंसानी प्रवृति को इस कहानी में उजागर किया गया है। इस कहानी में मियाँ-बीवी के बीच शक-ओ-संदेह के नतीजे में पैदा होने वाली तल्ख़ी को बयान किया गया है। मुलम एक चिड़चिड़ा मोची है, गौरी उसकी ख़ूबसूरत बीवी है, मुलम के ज़ुल्म-ओ-ज़्यादती से आजिज़ आकर गौरी अपने मायके चली जाती है तो मुलम को अपनी ज़्यादतियों का एहसास होता है और वो बदहवासी की हालत में अजीब-अजीब हरकतें करता है, लेकिन जब वही गौरी वापस आती है तो स्टेशन पर भीड़ की वजह से एक अजनबी से टकरा जाती है और मुलम ग़ुस्से से हकलाते हुए कहता है, ये नए ढंग सीख आई हो... फिर आ गईं मेरी जान को दुख देने।"

मुआविन और मैं

"एक ख़ुद्दार सहायक और एक एहसास-ए-कमतरी के शिकार आक़ा की कहानी है। पितंबर को नवजात पत्रिका कहानी के संपादक ने अपने सहायक के रूप में रखा है। बहुत जल्द पितंबर अपनी ज़ेहानत और क़ाबिलियत से कहानी को मज़बूत कर देता है। संपादक हमेशा उससे डरा रहता है कि कहीं पितंबर उसको छोड़कर न चला जाये, इसीलिए वो कभी पितंबर की तारीफ़ नहीं करता बल्कि हमेशा कमी निकालता रहता है और कहता रहता है कि तुम ख़ुद अपना कोई काम क्यों नहीं कर लेते। एक दिन जबकि पितंबर दो दिन का भूखा था और उसकी बहन बहुत बीमार थी, संपादक ने उससे आटा और घी अपने घर पहुँचाने के लिए कहा लेकिन पितंबर ने निजी काम करने से मना कर दिया और दफ़्तर से चला गया। संपादक कोशिश के बावजूद उसे रोक न सका।"

दूसरा किनारा

तीन मज़दूर-पेशा भाईयों के जद्द-ओ-जहद की कहानी है, जिसमें बाप अपने बेटों की नफ़्सियात को समझ नहीं पाता है। सुंदर, सोहना और रुजू अपने बाप के साथ बेकरी में काम करते थे। उनका गाँव खाड़ी के एक किनारे पर था और दूसरा किनारा उनको बहुत ख़ुशनुमा और दिलफ़रेब मालूम होता था। जब सुंदर के बचपन का दोस्त इल्म-उद-दीन तहसीलदार बन कर आया तो सुंदर ने भी तहसीलदार बनने की ठानी और दूसरे किनारे चला गया। सोहना ने भी दूसरे किनारे जाने की कोशिश की लेकिन बाप ने मार पीट कर उसे रोक लिया और एक दिन उसने ख़ुदकुशी कर ली, फिर बाप भी मर गया। एक दिन सुंदर झुर्रियों भरा चेहरा लेकर वापस आया तो वो ख़ून थूक रहा था। रुजू को उसने नसीहत की कि वो दूसरे किनारे की कभी ख़्वाहिश न करे।

नामुराद

सफ़दर एक मज़हबी घराने का रौशन ख़याल फ़र्द है, राबिया उसकी मंगेतर है जिसका अचानक इंतिक़ाल हो जाता है। राबिया की माँ सफ़दर को आख़िरी दीदार के लिए बुलवा भेजती है। सफ़दर रास्ते भर बुरे ख़यालात के नुक़्सानात के बारे में ग़ौर करता रहता है। उसे इस बात पर हैरत होती है कि रिश्ता तय करते वक़्त न उससे कोई मश्वरा किया गया न राबिया को होने वाला शौहर दिखाया गया तो फिर इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत। वो राबिया के घर पहुँचता है तो राबिया की माँ हाय वावेला करती है और बार-बार राबिया को नामुराद कहती रहती है। राबिया का चेहरा देखने के बाद सफ़दर फ़ैसला नहीं कर पाता है कि राबिया नामुराद है या सफ़दर या राबिया की माँ जो दोनों से वाक़िफ़ थी।

मन की मन में

औरत के हसद और डाह के जज़्बे पर मब्नी कहानी है। माधव बहुत ही शरीफ़ इंसान था जो दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। वो एक बेवा अम्बो को बहन मान कर उसकी मदद करता था, जिसे उसकी बीवी कलकारनी नापसंद करती थी और उसे सौत समझती थी। ठीक मकर संक्रांत के दिन माधव कलकारनी से बीस रुपये लेकर जाता है कि उससे पाज़ेब बनवा लाएगा लेकिन उन रुपयों से वो अम्बो का क़र्ज़ लाला को अदा कर देता है। इस जुर्म के नतीजे में कलकारनी रात में माधव पर घर के दरवाज़े बंद कर लेती है और माधव निमोनिया से मर जाता है। मरते वक़्त वो कलकारनी को वसीयत करता है कि वो अम्बो का ख़्याल रखे लेकिन अगले बरस संक्रांत के दिन जब अम्बो उसके यहाँ आती है तो वो सौत और मनहूस समझ कर उसे घर से भगा देती है और फिर अम्बो ग़ायब ही जाती है।

चेचक के दाग़

"जय राम बी.ए पास रेलवे में इकसठ रुपये का मुलाज़िम है। जय राम के चेहरे पर चेचक के दाग़ हैं, उसकी शादी सुखिया से हुई है जो बहुत ख़ूबसूरत है। सुखिया को पहले पहल तो जय राम से नफ़रत होती है लेकिन फिर उसकी शराफ़त, तालीम और नौकरी-पेशा होने के ख़याल से उसके चेचक के दाग़ को एक दम फ़रामोश कर देती है और शिद्दत से उसके आने का इंतज़ार करती रहती है। जय राम कई बार उसके पास से आकर गुज़र जाता है, सुखिया सोचती है कि शायद वो अपने चेचक के दाग़ों से शर्मिंदा है और शर्मीलेपन की वजह से नहीं आ रहा है। रात में सुखिया को उसकी ननद बताती है कि जय राम ने सुखिया की नाक लंबी होने पर एतराज़ किया है और उसके पास आने से इनकार कर दिया है।"

एवलांश

"दहेज़ की लानत पर लिखी गई कहानी है। कहानी का रावी एक वाश लाइन इंस्पेक्टर है। आर्थिक परेशानी के कारण उसकी दो बेटियों के रिश्ते तय नहीं हो पा रहे हैं। रावी के कुन्बे में छः लोग हैं, जिनकी ज़िम्मेदारियों का बोझ उसके काँधे पर है। दहेज़ पूरा करने के लिए वो रिश्वतें भी लेता है लेकिन फिर भी लड़के वालों की फ़रमाइशें पूरी होने का कोई इम्कान नज़र नहीं आता। रावी दुख से मुक्ति पाने के लिए अख़बार में पनाह लेता है। एक दिन उसने पढ़ा कि एवालांश आ जाने की वजह से एक पार्टी दब कर रह गई। इसी बीच रिश्वत के इल्ज़ाम में रावी नौकरी से निकाल दिया जाता है। उसी दिन उसकी छोटी बेटी दौड़ती हुई आती है और बताती है एक रेस्क्यू पार्टी ने सब लोगों को बचा लिया। रावी अपनी बेटी से पूछता है, क्या कोई रेस्क्यू पार्टी आएगी... रुकू़... क्या वो हमेशा आती है?"

लम्स

"यह वर्ग संघर्ष पर आधारित कहानी है। सर जीव राम के मूर्ति के लोकार्पण के मौक़े पर बहुत भीड़ है। सर जीव राम की मूर्ति के पत्थर पर लिखा है, सर जीव राम 1862 से 1931 तक... एक बड़ा सखी और आदम दोस्त। मूर्ति का लोकार्पण एक वयोवृद्ध नवाब साहब करते हैं जिनके बारे में भीड़ क़ियास लगाती है कि ये भी जल्द ही मूर्ति बन जाऐंगे। हुजूम को सर जीव राम के सखी होने में संदेह है और वे कई तरह की बातें करते हैं। लोकार्पण के बाद भी हुजूम वहीं खड़ा रहता है जिसे सेवा समिती के कार्यकर्ता हटाने की कोशिश करते हैं। वो उस बुत को छूने की कोशिश करते हैं और जब बुत के पाँव स्याह हो जाते हैं तो वो निश्चिंत हो कर अपने अपने काम पर चले जाते हैं।"

मिथुन

"फ़ंकार की ना-क़द्री और उसके शोषण की कहानी है। कीर्ति एक आर्टिस्ट की बेटी है जिसके बनाए हुए चित्रों को मगनलाल कौड़ियों के मोल ख़रीदता है और उन्हें सैकड़ों हज़ारों रुपए में बेच देता है। कीर्ति की माँ अस्पताल में भर्ती होती है, उसे ऑप्रेशन के लिए पैसों की सख़्त ज़रूरत होती है लेकिन उस वक़्त भी मगनलाल अपने शोषणकारी रवय्ये से बाज़ नहीं आता और वो सैकड़ों रुपए की मूर्ती के केवल दस रुपए देता है। मगनलाल कीर्ति को कामुक मूर्तियाँ बनाने के लिए उकसाता है और कीर्ति उससे वादा करके चली जाती है। इस बीच कीर्ति की माँ मर जाती है। कीर्ति जब अगली बार मिथुन लेकर आती है तो उससे हज़ार रुपए की मांग करती है जिस पर तकरार होती है। मगन जब मिथुन को देखता है तो उसमें बनी हुई औरत के पर्दे में कीर्ति को देख लेता है जिस पर वो अपने शक का इज़हार करता है तो कीर्ति उसके मुँह पर थप्पड़ मार कर चली जाती है। मर्द का रवय्या एक कमज़ोर औरत को किस तरह ताक़तवर बना देता है, यही इस कहानी का ख़ुलासा है।"

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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