Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

बेदार पर शेर

तिरी ज़ुल्फ़ की शब का बेदार मैं हूँ

तुझ आँखों के साग़र का मय-ख़्वार मैं हूँ

वली उज़लत

न-जाने कैसी निगाहों से मौत ने देखा

हुई है नींद से बेदार ज़िंदगी कि मैं हूँ

साइमा इसमा

महफ़िल-ए-इश्क़ में वो नाज़िश-ए-दौराँ आया

गदा ख़्वाब से बेदार कि सुल्ताँ आया

जोश मलीहाबादी

हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी

सब ख़्वाब में थे रात को बेदार हमीं थे

तअशशुक़ लखनवी

उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में

नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में

अल्लामा इक़बाल

जो सोते हैं नहीं कुछ ज़िक्र उन का वो तो सोते हैं

मगर जो जागते हैं उन में भी बेदार कितने हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं

बेदार हो के भी नज़र आते हैं ख़्वाब में

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

वो शोर होता है ख़्वाबों में 'आफ़्ताब' 'हुसैन'

कि ख़ुद को नींद से बेदार करने लगता हूँ

आफ़ताब हुसैन

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने दिया

रात भर ताला'-ए-बेदार ने सोने दिया

हैदर अली आतिश

ये रोज़ शब ये सुब्ह शाम ये बस्ती ये वीराना

सभी बेदार हैं इंसाँ अगर बेदार हो जाए

जिगर मुरादाबादी

शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है

मगर सोई हुई दुनिया कहाँ बेदार होती है

फ़िगार उन्नावी

कुछ ख़बर है तुझे चैन से सोने वाले

रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए

कली की आँख खुल जाए चमन बेदार हो जाए

असग़र गोंडवी

हिज्र इक वक़्फ़ा-ए-बेदार है दो नींदों में

वस्ल इक ख़्वाब है जिस की कोई ताबीर नहीं

अहमद मुश्ताक़

अब जिस दिल-ए-ख़्वाबीदा की खुलती नहीं आँखें

रातों को सिरहाने मिरे बेदार यही था

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

वस्ल की रात ख़ुशी ने मुझे सोने दिया

मैं भी बेदार रहा ताले-ए-बेदार के साथ

जलील मानिकपूरी

कोई तो रात को देखेगा जवाँ होते हुए

इस भरे शहर में बेदार कोई तो होगा

शहज़ाद अहमद

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए