इक-आध बार तो जाँ वारनी ही पड़ती है
मोहब्बतें हों तो बनता नहीं बहाना कोई
क़ासिद को उस ने जाते ही रुख़्सत किया था लेक
बद-ज़ात माँदगी के बहाने से रह गया
बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का
मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे
मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना
उठाया उस ने बीड़ा क़त्ल का कुछ दिल में ठाना है
चबाना पान का भी ख़ूँ बहाने का बहाना है
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना
तिरी याद तो बन गई इक बहाना
अब किसी और तरफ़ बात घुमाने वाले
मैं समझती हूँ तिरी बात का मतलब समझे
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं
तुझे हर बहाने से हम देखते हैं
हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी
हवा-ए-ताज़ा का झोंका बहाना हो गया है
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
जब आँसुओं से भरी हों आँखें तो मुस्कुराना भी चाहते हैं
शाइ'री झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही
ज़िंदा रहने के लिए कोई बहाना ही सही
ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है
किसी से बात करने का बहाना चाहती है
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
इसी बहाने ठहर जाएँ उस का घर है यहाँ
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला
पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था
तिरे बहाने हमें इंतिज़ार अपना था
वो बे-ख़ुदी थी मोहब्बत की बे-रुख़ी तो न थी
पे उस को तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को इक बहाना हुआ
सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है
कोई सदा कोई आवाज़ा-ए-जरस ही सही
कोई बहाना कि हम जाँ निसार करते रहें
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
किसी के जौर-ओ-सितम का तो इक बहाना था
हमारे दिल को बहर-हाल टूट जाना था
जुनूँ का कोई फ़साना तो हाथ आने दो
मैं रो पड़ूँगा बहाना तो हाथ आने दो
तलाश एक बहाना था ख़ाक उड़ाने का
पता चला कि हमें जुस्तुजू-ए-यार न थी
जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें
ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही