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ज़हीर काश्मीरी

1919 - 1994 | लाहौर, पाकिस्तान

शायर व फ़िल्म पटकथा-लेखक। 'प्रगतिशील लेखक संघ' से जुड़े रहे

शायर व फ़िल्म पटकथा-लेखक। 'प्रगतिशील लेखक संघ' से जुड़े रहे

ज़हीर काश्मीरी

ग़ज़ल 39

नज़्म 1

 

अशआर 30

कुल काएनात फ़िक्र से आज़ाद हो गई

इंसाँ मिसाल-ए-दस्त-ए-तह-ए-संग रह गया

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बर्क़-ए-ज़माना दूर थी लेकिन मिशअल-ए-ख़ाना दूर थी

हम तो 'ज़हीर' अपने ही घर की आग में जल कर ख़ाक हुए

हमें ख़बर है कि हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब

हमारे बाद अंधेरा नहीं उजाला है

हम ने अपने इश्क़ की ख़ातिर ज़ंजीरें भी देखीं हैं

हम ने उन के हुस्न की ख़ातिर रक़्स भी ज़ेर-ए-दार किया

हिज्र के दौर में हर दौर को शामिल कर लें

इस में शामिल यही इक उम्र-ए-गुरेज़ाँ क्यूँ है

पुस्तकें 11

वीडियो 4

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
At a mushaira

ज़हीर काश्मीरी

हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या

ज़हीर काश्मीरी

अब है क्या लाख बदल चश्म-ए-गुरेज़ाँ की तरह

ज़हीर काश्मीरी

तू अगर ग़ैर है नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ क्यूँ है

ज़हीर काश्मीरी

"लाहौर" के और शायर

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