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Sufi Ghulam Mustafa Tabassum's Photo'

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

1899 - 1978 | लाहौर, पाकिस्तान

एक प्रसिद्ध शायर, उर्दू के अलावा फ़ारसी और पंजाबी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए प्रख्यात

एक प्रसिद्ध शायर, उर्दू के अलावा फ़ारसी और पंजाबी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए प्रख्यात

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम के शेर

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कितनी फ़रियादें लबों पर रुक गईं

कितने अश्क आहों में ढल कर रह गए

हुस्न का दामन फिर भी ख़ाली

इश्क़ ने लाखों अश्क बिखेरे

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई

जब भी दो आँसू निकल कर रह गए

दर्द के उनवाँ बदल कर रह गए

कौन किस का ग़म खाए कौन किस को बहलाए

तेरी बे-कसी तन्हा मैरी बेबसी तन्हा

मैं तोहफ़ा ले के आया हूँ तमन्नाओं के फूलों का

लुटाने को बहार-ए-ज़िंदगानी ले के आया हूँ

जाने किस की थी ख़ता याद नहीं

हम हुए कैसे जुदा याद नहीं

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के

आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई

मिलते गए हैं मोड़ नए हर मक़ाम पर

बढ़ती गई है दूरियाँ मंज़िल जगह जगह

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई

दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई

आज 'तबस्सुम' सब के लब पर

अफ़्साने हैं मेरे तेरे

इक फ़क़त याद है जाना उन का

और कुछ इस के सिवा याद नहीं

ऐसा हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा

ऐसा हो कि तुम भी मुदावा कर सको

एक शोला सा उठा था दिल में

जाने किस की थी सदा याद नहीं

रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल

किस तरह भूल गया याद नहीं

खुल के रोने की तमन्ना थी हमें

एक दो आँसू निकल कर रह गए

दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें मिलें

नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो

औरों की मोहब्बत के दोहराए हैं अफ़्साने

बात अपनी मोहब्बत की होंटों पे नहीं आई

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