जमील यूसुफ़
ग़ज़ल 19
अशआर 6
ऐ ख़ुदा तू ही बे-मिसाल नहीं
मैं भी हूँ काएनात में तन्हा
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तू मिरी राह में क्यूँ हाइल है
एक उमडे हुए दरिया की तरह
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तेरी दुनिया में तिरे हुस्न का शैदाई हूँ
ऐ ख़ुदा मुझ को गुनहगार न समझा जाए
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तेरी दूरी भी है मुश्किल तिरी क़ुर्बत भी मुहाल
किस क़दर तू ने मिरी जान सताया है मुझे
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दिल जहाँ ले जाए दिल के साथ जाना चाहिए
इस से बढ़ कर और कोई रहनुमा होता नहीं
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