अताउर्रहमान जमील
ग़ज़ल 7
अशआर 7
आँसू तुम्हारी आँख में आए तो उठ गए
हम जब करम की ताब न लाए तो उठ गए
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उन को भी 'जमील' अपने मुक़द्दर से गिला है
वो लोग जो सुनते थे कि चालाक बहुत हैं
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कुछ ख़्वाब कुछ ख़याल में मस्तूर हो गए
तुम क्या क़रीब निकले कि सब दूर हो गए
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तुम्हारी बज़्म से जब भी उठे तो हाल-ज़दा
कभी जवाब के मारे कभी सवाल-ज़दा
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दिल पर बर्फ़ की सिल रख देना नागन बन कर डस लेना
अपने लिए दोनों ही बराबर काली हो कि उजाली रात
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