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अंजुम ख़लीक़

1950

पाकिस्तान के शायर और पत्रकार

पाकिस्तान के शायर और पत्रकार

अंजुम ख़लीक़

ग़ज़ल 23

नज़्म 5

 

अशआर 39

क्या जानें सफ़र ख़ैर से गुज़रे कि गुज़रे

तुम घर का पता भी मिरे सामान में रखना

बहुत साबित-क़दम निकलें गए वक़्तों की तहज़ीबें

कि अब उन के हवालों से खंडर आबाद होते हैं

बीते हुए लम्हात को पहचान में रखना

मुरझाए हुए फूल भी गुल-दान में रखना

मैं अब तो शहर में इस बात से पहचाना जाता हूँ

तुम्हारा ज़िक्र करना और करते ही चले जाना

सो मेरी प्यास का दोनों तरफ़ इलाज नहीं

उधर है एक समुंदर इधर है एक सराब

पुस्तकें 3

 

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