अख़्तर हुसैन जाफ़री
ग़ज़ल 4
नज़्म 21
अशआर 4
कोई तश्बीह का ख़ुर्शीद न तलमीह का चाँद
सर-ए-क़िर्तास लगा हर्फ़-ए-बरहना अच्छा
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तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया
चराग़-ए-ख़ुद-कलामी का धुआँ बाज़ार तक आया
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दिल जहाँ बात करे दिल ही जहाँ बात सुने
कार-ए-दुश्वार है उस तर्ज़ में कहना अच्छा
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शाख़-ए-तन्हाई से फिर निकली बहार-ए-फ़स्ल-ए-ज़ात
अपनी सूरत पर हुए हम फिर बहाल उस के लिए
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वीडियो 4
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