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न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

MORE BYमिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

    पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे

    हो मुमकिन पता जिन का उन्हें कोई कहाँ ढूँढे

    तलाश इस तरह बज़्म-ए-ऐश में है बे-निशानों की

    कोई कपड़े में जैसे ज़ख़्म-ए-सोज़न का निशाँ ढूँढे

    हम उस के ज़िक्र ही से ख़ुश किया करते हैं दिल अपना

    सहारा जैसे तिनके का ग़रीक़-ए-नीम-जाँ ढूँढे

    किधर को रूठ कर जाता रहा अहद-ए-शबाब अपना

    पाया इस मुसाफ़िर को हज़ारों कारवाँ ढूँढे

    उठाना हो सुबुक आदम पे जब बार-ए-अमानत का

    कहाँ से फिर कोई इस के लिए बार-ए-गिराँ ढूँढे

    गिरह साँसों में डाली है 'हवस' इफ़रात-ए-गिर्या ने

    आह-ए-ना-तवाँ आने को लब तक नर्दबाँ ढूँढे

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