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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बस एक बार उसे रौशनी में देखा था

असलम आज़ाद

बस एक बार उसे रौशनी में देखा था

असलम आज़ाद

MORE BYअसलम आज़ाद

    बस एक बार उसे रौशनी में देखा था

    फिर इस के ब'अद अंधेरा बहुत अंधेरा था

    वो हाल का नहीं माज़ी का कोई क़िस्सा था

    जब अपने-आप में मैं टूट कर बिखरता था

    मंज़िलों की तलब में लहू लहू थे बदन

    रास्तों के लिए कोई आह भरता था

    वो मुझ को सौंप गया मंज़िलों की महरूमी

    जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ चलता था

    दश्त दर से अलग था जंगलों से जुदा

    वो अपने शहर में रहता था फिर भी तन्हा था

    स्रोत :
    • पुस्तक : Tahreek Silver Jubilee Number (पृष्ठ 424)
    • रचनाकार : Gopal Mittal, Makhmoor Saeedi, Prem Gopal Mittal
    • प्रकाशन : Monthly Tahreek, 9, Ansari Market, Daryaganj, New Delhi-110002 (July, Aug., Sep. Oct. 1978,Volume No. 26,Issue No. 4,5,6,7,)
    • संस्करण : July, Aug., Sep. Oct. 1978,Volume No. 26,Issue No. 4,5,6,7,

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